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                        संज्ञा(Noun) की परिभाषा

संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते है, जिससे किसी विशेष वस्तु, भाव और जीव के नाम का बोध हो, उसे संज्ञा कहते है। 
दूसरे शब्दों में- किसी प्राणी, वस्तु, स्थान, गुण या भाव के नाम को संज्ञा कहते है।
जैसे- प्राणियों के नाम- मोर, घोड़ा, अनिल, किरण, जवाहरलाल नेहरू आदि।
वस्तुओ के नाम- अनार, रेडियो, किताब, सन्दूक, आदि।
स्थानों के नाम- कुतुबमीनार, नगर, भारत, मेरठ आदि
भावों के नाम- वीरता, बुढ़ापा, मिठास आदि
यहाँ 'वस्तु' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है, जो केवल वाणी और पदार्थ का वाचक नहीं, वरन उनके धर्मो का भी सूचक है। 
साधारण अर्थ में 'वस्तु' का प्रयोग इस अर्थ में नहीं होता। अतः वस्तु के अन्तर्गत प्राणी, पदार्थ और धर्म आते हैं। इन्हीं के आधार पर संज्ञा के भेद किये गये हैं।

संज्ञा के भेद

संज्ञा के पाँच भेद होते है-
(1)व्यक्तिवाचक (proper noun )    (2)जातिवाचक (common noun) (3)भाववाचक (abstract noun)
(4)समूहवाचक (collective noun) (5)द्रव्यवाचक (material noun)
(1)व्यक्तिवाचक संज्ञा:-जिस शब्द से किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु या स्थान के नाम का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। 
जैसे-
व्यक्ति का नाम-रवीना, सोनिया गाँधी, श्याम, हरि, सुरेश, सचिन आदि।
वस्तु का नाम- कार, टाटा चाय, कुरान, गीता रामायण आदि।
स्थान का नाम-ताजमहल, कुतुबमीनार, जयपुर आदि।
दिशाओं के नाम- उत्तर, पश्र्चिम, दक्षिण, पूर्व।
देशों के नाम- भारत, जापान, अमेरिका, पाकिस्तान, बर्मा।
राष्ट्रीय जातियों के नाम- भारतीय, रूसी, अमेरिकी।
समुद्रों के नाम- काला सागर, भूमध्य सागर, हिन्द महासागर, प्रशान्त महासागर।
नदियों के नाम- गंगा, ब्रह्मपुत्र, बोल्गा, कृष्णा, कावेरी, सिन्धु।
पर्वतों के नाम- हिमालय, विन्ध्याचल, अलकनन्दा, कराकोरम।
नगरों, चौकों और सड़कों के नाम- वाराणसी, गया, चाँदनी चौक, हरिसन रोड, अशोक मार्ग।
पुस्तकों तथा समाचारपत्रों के नाम- रामचरितमानस, ऋग्वेद, धर्मयुग, इण्डियन नेशन, आर्यावर्त।
ऐतिहासिक युद्धों और घटनाओं के नाम- पानीपत की पहली लड़ाई, सिपाही-विद्रोह, अक्तूबर-क्रान्ति।
दिनों, महीनों के नाम- मई, अक्तूबर, जुलाई, सोमवार, मंगलवार।
त्योहारों, उत्सवों के नाम- होली, दीवाली, रक्षाबन्धन, विजयादशमी।
(2) जातिवाचक संज्ञा :- बच्चा, जानवर, नदी, अध्यापक, बाजार, गली, पहाड़, खिड़की, स्कूटर आदि शब्द एक ही प्रकार प्राणी, वस्तु और स्थान का बोध करा रहे हैं। इसलिए ये 'जातिवाचक संज्ञा' हैं।
इस प्रकार-
जिस शब्द से किसी जाति के सभी प्राणियों या प्रदार्थो का बोध होता है, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते है।
जैसे- लड़का, पशु-पक्षयों, वस्तु, नदी, मनुष्य, पहाड़ आदि।
'लड़का' से राजेश, सतीश, दिनेश आदि सभी 'लड़कों का बोध होता है।
'पशु-पक्षयों' से गाय, घोड़ा, कुत्ता आदि सभी जाति का बोध होता है।
'वस्तु' से मकान कुर्सी, पुस्तक, कलम आदि का बोध होता है।
'नदी' से गंगा यमुना, कावेरी आदि सभी नदियों का बोध होता है।
'मनुष्य' कहने से संसार की मनुष्य-जाति का बोध होता है।
'पहाड़' कहने से संसार के सभी पहाड़ों का बोध होता हैं।
(3)भाववाचक संज्ञा :-थकान, मिठास, बुढ़ापा, गरीबी, आजादी, हँसी, चढ़ाई, साहस, वीरता आदि शब्द-भाव, गुण, अवस्था तथा क्रिया के व्यापार का बोध करा रहे हैं। इसलिए ये 'भाववाचक संज्ञाएँ' हैं।
इस प्रकार-
जिन शब्दों से किसी प्राणी या पदार्थ के गुण, भाव, स्वभाव या अवस्था का बोध होता है, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं। 
जैसे- उत्साह, ईमानदारी, बचपन, आदि । इन उदाहरणों में 'उत्साह'से मन का भाव है। 'ईमानदारी' से गुण का बोध होता है। 'बचपन' जीवन की एक अवस्था या दशा को बताता है। अतः उत्साह, ईमानदारी, बचपन, आदि शब्द भाववाचक संज्ञाए हैं।
हर पदार्थ का धर्म होता है। पानी में शीतलता, आग में गर्मी, मनुष्य में देवत्व और पशुत्व इत्यादि का होना आवश्यक है। पदार्थ का गुण या धर्म पदार्थ से अलग नहीं रह सकता। घोड़ा है, तो उसमे बल है, वेग है और आकार भी है। व्यक्तिवाचक संज्ञा की तरह भाववाचक संज्ञा से भी किसी एक ही भाव का बोध होता है। 'धर्म, गुण, अर्थ' और 'भाव' प्रायः पर्यायवाची शब्द हैं। इस संज्ञा का अनुभव हमारी इन्द्रियों को होता है और प्रायः इसका बहुवचन नहीं होता।

भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण
भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, विशेषण, क्रिया, सर्वनाम और अव्यय शब्दों से बनती हैं। भाववाचक संज्ञा बनाते समय शब्दों के अंत में प्रायः पन, त्व, ता आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
(1) जातिवाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा बनाना
जातिवाचक संज्ञाभाववाचक संज्ञााजातिवाचक संज्ञाभाववाचक संज्ञाा
स्त्री-स्त्रीत्वभाई-भाईचारा
मनुष्य-मनुष्यतापुरुष-पुरुषत्व, पौरुष
शास्त्र-शास्त्रीयताजाति-जातीयता
पशु-पशुताबच्चा-बचपन
दनुज-दनुजतानारी-नारीत्व
पात्र-पात्रताबूढा-बुढ़ापा
लड़का-लड़कपनमित्र-मित्रता
दास-दासत्वपण्डित-पण्डिताई
अध्यापक-अध्यापनसेवक-सेवा

(2) विशेषण से भाववाचक संज्ञा बनाना
विशेषणभाववाचक संज्ञाविशेषणभाववाचक संज्ञा
लघु-लघुता, लघुत्व, लाघववीर-वीरता, वीरत्व
एक-एकता, एकत्वचालाक-चालाकी
खट्टा-खटाईगरीब-गरीबी
गँवार-गँवारपनपागल-पागलपन
बूढा-बुढ़ापामोटा-मोटापा
नवाब-नवाबीदीन-दीनता, दैन्य
बड़ा-बड़ाईसुंदर-सौंदर्य, सुंदरता
भला-भलाईबुरा-बुराई
ढीठ-ढिठाईचौड़ा-चौड़ाई
लाल-लाली, लालिमाबेईमान-बेईमानी
सरल-सरलता, सारल्यआवश्यकता-आवश्यकता
परिश्रमी-परिश्रमअच्छा-अच्छाई
गंभीर-गंभीरता, गांभीर्यसभ्य-सभ्यता
स्पष्ट-स्पष्टताभावुक-भावुकता
अधिक-अधिकता, आधिक्यगर्म-गर्मी
सर्द-सर्दीकठोर-कठोरता
मीठा-मिठासचतुर-चतुराई
सफेद-सफेदीश्रेष्ठ-श्रेष्ठता
मूर्ख-मूर्खताराष्ट्रीयराष्ट्रीयता
(3) क्रिया से भाववाचक संज्ञा बनाना
क्रियाभाववाचक संज्ञाक्रियाभाववाचक संज्ञा
खोजना-खोजसीना-सिलाई
जीतना-जीतरोना-रुलाई
लड़ना-लड़ाईपढ़ना-पढ़ाई
चलना-चाल, चलनपीटना-पिटाई
देखना-दिखावा, दिखावटसमझना-समझ
सींचना-सिंचाईपड़ना-पड़ाव
पहनना-पहनावाचमकना-चमक
लूटना-लूटजोड़ना-जोड़
घटना-घटावनाचना-नाच
बोलना-बोलपूजना-पूजन
झूलना-झूलाजोतना-जुताई
कमाना-कमाईबचना-बचाव
रुकना-रुकावटबनना-बनावट
मिलना-मिलावटबुलाना-बुलावा
भूलना-भूलछापना-छापा, छपाई
बैठना-बैठक, बैठकीबढ़ना-बाढ़
घेरना-घेराछींकना-छींक
फिसलना-फिसलनखपना-खपत
रँगना-रँगाई, रंगतमुसकाना-मुसकान
उड़ना-उड़ानघबराना-घबराहट
मुड़ना-मोड़सजाना-सजावट
चढ़ना-चढाईबहना-बहाव
मारना-मारदौड़ना-दौड़
गिरना-गिरावटकूदना-कूद
(4) संज्ञा से विशेषण बनाना
संज्ञाविशेषणसंज्ञाविशेषण
अंत-अंतिम, अंत्यअर्थ-आर्थिक
अवश्य-आवश्यकअंश-आंशिक
अभिमान-अभिमानीअनुभव-अनुभवी
इच्छा-ऐच्छिकइतिहास-ऐतिहासिक
ईश्र्वर-ईश्र्वरीयउपज-उपजाऊ
उन्नति-उन्नतकृपा-कृपालु
काम-कामी, कामुककाल-कालीन
कुल-कुलीनकेंद्र-केंद्रीय
क्रम-क्रमिककागज-कागजी
किताब-किताबीकाँटा-कँटीला
कंकड़-कंकड़ीलाकमाई-कमाऊ
क्रोध-क्रोधीआवास-आवासीय
आसमान-आसमानीआयु-आयुष्मान
आदि-आदिमअज्ञान-अज्ञानी
अपराध-अपराधीचाचा-चचेरा
जवाब-जवाबीजहर-जहरीला
जाति-जातीयजंगल-जंगली
झगड़ा-झगड़ालूतालु-तालव्य
तेल-तेलहादेश-देशी
दान-दानीदिन-दैनिक
दया-दयालुदर्द-दर्दनाक
दूध-दुधिया, दुधारधन-धनी, धनवान
धर्म-धार्मिकनीति-नैतिक
खपड़ा-खपड़ैलखेल-खेलाड़ी
खर्च-खर्चीलाखून-खूनी
गाँव-गँवारू, गँवारगठन-गठीला
गुण-गुणी, गुणवानघर-घरेलू
घमंड-घमंडीघाव-घायल
चुनाव-चुनिंदा, चुनावीचार-चौथा
पश्र्चिम-पश्र्चिमीपूर्व-पूर्वी
पेट-पेटूप्यार-प्यारा
प्यास-प्यासापशु-पाशविक
पुस्तक-पुस्तकीयपुराण-पौराणिक
प्रमाण-प्रमाणिकप्रकृति-प्राकृतिक
पिता-पैतृकप्रांत-प्रांतीय
बालक-बालकीयबर्फ-बर्फीला
भ्रम-भ्रामक, भ्रांतभोजन-भोज्य
भूगोल-भौगोलिकभारत-भारतीय
मन-मानसिकमास-मासिक
माह-माहवारीमाता-मातृक
मुख-मौखिकनगर-नागरिक
नियम-नियमितनाम-नामी, नामक
निश्र्चय-निश्र्चितन्याय-न्यायी
नौ-नाविकनमक-नमकीन
पाठ-पाठ्यपूजा-पूज्य, पूजित
पीड़ा-पीड़ितपत्थर-पथरीला
पहाड़-पहाड़ीरोग-रोगी
राष्ट्र-राष्ट्रीयरस-रसिक
लोक-लौकिकलोभ-लोभी
वेद-वैदिकवर्ष-वार्षिक
व्यापर-व्यापारिकविष-विषैला
विस्तार-विस्तृतविवाह-वैवाहिक
विज्ञान-वैज्ञानिकविलास-विलासी
विष्णु-वैष्णवशरीर-शारीरिक
शास्त्र-शास्त्रीयसाहित्य-साहित्यिक
समय-सामयिकस्वभाव-स्वाभाविक
सिद्धांत-सैद्धांतिकस्वार्थ-स्वार्थी
स्वास्थ्य-स्वस्थस्वर्ण-स्वर्णिम
मामा-ममेरामर्द-मर्दाना
मैल-मैलामधु-मधुर
रंग-रंगीन, रँगीलारोज-रोजाना
साल-सालानासुख-सुखी
समाज-सामाजिकसंसार-सांसारिक
स्वर्ग-स्वर्गीय, स्वर्गिकसप्ताह-सप्ताहिक
समुद्र-सामुद्रिक, समुद्रीसंक्षेप-संक्षिप्त
सुर-सुरीलासोना-सुनहरा
क्षण-क्षणिकहवा-हवाई
(5) क्रिया से विशेषण बनाना
क्रियाविशेषणक्रियाविशेषण
लड़ना-लड़ाकूभागना-भगोड़ा
अड़ना-अड़ियलदेखना-दिखाऊ
लूटना-लुटेराभूलना-भुलक्कड़
पीना-पियक्कड़तैरना-तैराक
जड़ना-जड़ाऊगाना-गवैया
पालना-पालतूझगड़ना-झगड़ालू
टिकना-टिकाऊचाटना-चटोर
बिकना-बिकाऊपकना-पका
(6) सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा बनाना
सर्वनामभाववाचक संज्ञासर्वनामभाववाचक संज्ञा
अपना-अपनापन /अपनावमम-ममता/ ममत्व
निज-निजत्व, निजतापराया-परायापन
स्व-स्वत्वसर्व-सर्वस्व
अहं-अहंकारआप-आपा
(7) क्रिया विशेषण से भाववाचक संज्ञा
मन्द- मन्दी;
दूर- दूरी; 
तीव्र- तीव्रता;
शीघ्र- शीघ्रता इत्यादि।
(8) अव्यय से भाववाचक संज्ञा
परस्पर- पारस्पर्य;
समीप- सामीप्य;
निकट- नैकट्य;
शाबाश- शाबाशी;
वाहवाह- वाहवाही 
धिक्- धिक्कार 
शीघ्र- शीघ्रता
(4)समूहवाचक संज्ञा :- जिस संज्ञा शब्द से वस्तुअों के समूह या समुदाय का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है।
जैसे- व्यक्तियों का समूह- भीड़, जनता, सभा, कक्षा; वस्तुओं का समूह- गुच्छा, कुंज, मण्डल, घौद।
(5)द्रव्यवाचक संज्ञा :-जिस संज्ञा से नाप-तौलवाली वस्तु का बोध हो, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन संज्ञा शब्दों से किसी धातु, द्रव या पदार्थ का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है। 
जैसे- ताम्बा, पीतल, चावल, घी, तेल, सोना, लोहा आदि।
संज्ञाओं का प्रयोग
संज्ञाओं के प्रयोग में कभी-कभी उलटफेर भी हो जाया करता है। कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा रहे है-
(क) जातिवाचक : व्यक्तिवाचक- कभी- कभी जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं में होता है। जैसे- 'पुरी' से जगत्राथपुरी का 'देवी' से दुर्गा का, 'दाऊ' से कृष्ण के भाई बलदेव का, 'संवत्' से विक्रमी संवत् का, 'भारतेन्दु' से बाबू हरिश्र्चन्द्र का और 'गोस्वामी' से तुलसीदासजी का बोध होता है। इसी तरह बहुत-सी योगरूढ़ संज्ञाएँ मूल रूप से जातिवाचक होते हुए भी प्रयोग में व्यक्तिवाचक के अर्थ में चली आती हैं। जैसे- गणेश, हनुमान, हिमालय, गोपाल इत्यादि।
(ख) व्यक्तिवाचक : जातिवाचक- कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक (अनेक व्यक्तियों के अर्थ) में होता है। ऐसा किसी व्यक्ति का असाधारण गुण या धर्म दिखाने के लिए किया जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा में बदल जाती है। जैसे- गाँधी अपने समय के कृष्ण थे; यशोदा हमारे घर की लक्ष्मी है; तुम कलियुग के भीम हो इत्यादि।
(ग) भाववाचक : जातिवाचक- कभी-कभी भाववाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा में होता है। उदाहरणार्थ- ये सब कैसे अच्छे पहरावे है। यहाँ 'पहरावा' भाववाचक संज्ञा है, किन्तु प्रयोग जातिवाचक संज्ञा में हुआ। 'पहरावे' से 'पहनने के वस्त्र' का बोध होता है।

संज्ञा के रूपान्तर (लिंग, वचन और कारक में सम्बन्ध)

संज्ञा विकारी शब्द है। विकार शब्दरूपों को परिवर्तित अथवा रूपान्तरित करता है। संज्ञा के रूप लिंग, वचन और कारक चिह्नों (परसर्ग) के कारण बदलते हैं।
लिंग के अनुसार
नर खाता है- नारी खाती है। 
लड़का खाता है- लड़की खाती है।
इन वाक्यों में 'नर' पुंलिंग है और 'नारी' स्त्रीलिंग। 'लड़का' पुंलिंग है और 'लड़की' स्त्रीलिंग। इस प्रकार, लिंग के आधार पर संज्ञाओं का रूपान्तर होता है।
वचन के अनुसार
लड़का खाता है- लड़के खाते हैं। 
लड़की खाती है- लड़कियाँ खाती हैं। 
एक लड़का जा रहा है- तीन लड़के जा रहे हैं।
इन वाक्यों में 'लड़का' शब्द एक के लिए आया है और 'लड़के' एक से अधिक के लिए। 'लड़की' एक के लिए और 'लड़कियाँ' एक से अधिक के लिए व्यवहृत हुआ है। यहाँ संज्ञा के रूपान्तर का आधार 'वचन' है। 'लड़का' एकवचन है और 'लड़के' बहुवचन में प्रयुक्त हुआ है।
कारक- चिह्नों के अनुसार
लड़का खाना खाता है- लड़के ने खाना खाया। 
लड़की खाना खाती है- लड़कियों ने खाना खाया।
इन वाक्यों में 'लड़का खाता है' में 'लड़का' पुंलिंग एकवचन है और 'लड़के ने खाना खाया' में भी 'लड़के' पुंलिंग एकवचन है, पर दोनों के रूप में भेद है। इस रूपान्तर का कारण कर्ता कारक का चिह्न 'ने' है, जिससे एकवचन होते हुए भी 'लड़के' रूप हो गया है। इसी तरह, लड़के को बुलाओ, लड़के से पूछो, लड़के का कमरा, लड़के के लिए चाय लाओ इत्यादि वाक्यों में संज्ञा (लड़का-लड़के) एकवचन में आयी है। इस प्रकार, संज्ञा बिना कारक-चिह्न के भी होती है और कारक चिह्नों के साथ भी। दोनों स्थितियों में संज्ञाएँ एकवचन में अथवा बहुवचन में प्रयुक्त होती है। उदाहरणार्थ-
बिना कारक-चिह्न के- लड़के खाना खाते हैं। (बहुवचन)
लड़कियाँ खाना खाती हैं। (बहुवचन)
कारक-चिह्नों के साथ- लड़कों ने खाना खाया। 
लड़कियों ने खाना खाया। 
लड़कों से पूछो। 
लड़कियों से पूछो। 
इस प्रकार, संज्ञा का रूपान्तर लिंग, वचन और कारक के कारण होता है।

सर्वनाम (Pronoun)की परिभाषा

जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है। 
दूसरे शब्दों में- सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते है, जो पूर्वापरसंबध से किसी भी संज्ञा के बदले आता है।
सरल शब्दों में- सर्व (सब) नामों (संज्ञाओं) के बदले जो शब्द आते है, उन्हें 'सर्वनाम' कहते हैं।
सर्वनाम यानी सबके लिए नाम। इसका प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है। आइए देखें, कैसे? राधा सातवीं कक्षा में पढ़ती है। वह पढ़ाई में बहुत तेज है। उसके सभी मित्र उससे प्रसन्न रहते हैं। वह कभी-भी स्वयं पर घमंड नहीं करती। वह अपने माता-पिता का आदर करती है। 
आपने देखा कि ऊपर लिखे अनुच्छेद में राधा के स्थान पर वह, उसके, उससे, स्वयं, अपने आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। अतः ये सभी शब्द सर्वनाम हैं।
इस प्रकार,
संज्ञा के स्थान पर आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।
मै, तू, वह, आप, कोई, यह, ये, वे, हम, तुम, कुछ, कौन, क्या, जो, सो, उसका आदि सर्वनाम शब्द हैं। अन्य सर्वनाम शब्द भी इन्हीं शब्दों से बने हैं, जो लिंग, वचन, कारक की दृष्टि से अपना रूप बदलते हैं; जैसे-
राधा नृत्य करती है। राधा का गाना भी अच्छा होता है। राधा गरीबों की मदद करती है। 
राधा नृत्य करती है। उसका गाना भी अच्छा होता है। वह गरीबों की मदद करती है। 
आप- अपना, यह- इस, इसका, वह- उस, उसका।
अन्य उदाहरण 
(1)'सुभाष' एक विद्यार्थी है। 
(2)वह (सुभाष) रोज स्कूल जाता है।
(3)उसके (सुभाष के) पास सुन्दर बस्ता है।
(4)उसे (सुभाष को )घूमना बहुत पसन्द है।
उपयुक्त वाक्यों में 'सुभाष' शब्द संज्ञा है तथा इसके स्थान पर वह, उसके, उसे शब्द संज्ञा (सुभाष) के स्थान पर प्रयोग किये गए है। इसलिए ये सर्वनाम है।
संज्ञा की अपेक्षा सर्वनाम की विलक्षणता यह है कि संज्ञा से जहाँ उसी वस्तु का बोध होता है, जिसका वह (संज्ञा) नाम है, वहाँ सर्वनाम में पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध होता है। 'लड़का' कहने से केवल लड़के का बोध होता है, घर, सड़क आदि का बोध नहीं होता; किन्तु 'वह' कहने से पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार ही किसी वस्तु का बोध होता है।

सर्वनाम के भेद

सर्वनाम के छ: भेद होते है-
(1)पुरुषवाचक सर्वनाम (personal pronoun)
(2)निश्चयवाचक सर्वनाम (demonstrative pronoun)
(3)अनिश्चयवाचक सर्वनाम (Indefinite pronoun)
(4)संबंधवाचक सर्वनाम (Relative Pronoun)
(5)प्रश्नवाचक सर्वनाम (Interrogative Pronoun)
(6)निजवाचक सर्वनाम (Reflexive Pronoun)
(1) पुरुषवाचक सर्वनाम:-जिन सर्वनाम शब्दों से व्यक्ति का बोध होता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है।
दूसरे शब्दों में- बोलने वाले, सुनने वाले तथा जिसके विषय में बात होती है, उनके लिए प्रयोग किए जाने वाले सर्वनाम पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
'पुरुषवाचक सर्वनाम' पुरुषों (स्त्री या पुरुष) के नाम के बदले आते हैं। 
जैसे- मैं आता हूँ। तुम जाते हो। वह भागता है।
उपर्युक्त वाक्यों में 'मैं, तुम, वह' पुरुषवाचक सर्वनाम हैं।

पुरुषवाचक सर्वनाम के प्रकार

पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते है-
(i)उत्तम पुरुष (ii)मध्यम पुरुष (iii)अन्य पुरुष
(i)उत्तम पुरुष :-जिन सर्वनामों का प्रयोग बोलने वाला अपने लिए करता है, उन्हें उत्तम पुरुष कहते है। 
जैसे- मैं, हमारा, हम, मुझको, हमारी, मैंने, मेरा, मुझे आदि।
उदाहरण- मैं स्कूल जाऊँगा।
हम मतदान नहीं करेंगे।
यह कविता मैंने लिखी है। 
बारिश में हमारी पुस्तकें भीग गई। 
मैंने उसे धोखा नहीं दिया।
(ii) मध्यम पुरुष :-जिन सर्वनामों का प्रयोग सुनने वाले के लिए किया जाता है, उन्हें मध्यम पुरुष कहते है।
जैसे- तू, तुम, तुम्हे, आप, तुम्हारे, तुमने, आपने आदि।
उदाहरण- तुमने गृहकार्य नहीं किया है। 
तुम सो जाओ।
तुम्हारे पिता जी क्या काम करते हैं ?
तू घर देर से क्यों पहुँचा ?
तुमसे कुछ काम है।
(iii)अन्य पुरुष:-जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति के लिए किया जाता है, उन्हें अन्य पुरुष कहते है। 
जैसे- वे, यह, वह, इनका, इन्हें, उसे, उन्होंने, इनसे, उनसे आदि।
उदाहरण- वे मैच नही खेलेंगे। 
उन्होंने कमर कस ली है।
वह कल विद्यालय नहीं आया था। 
उसे कुछ मत कहना। 
उन्हें रोको मत, जाने दो। 
इनसे कहिए, अपने घर जाएँ।
(2) निश्चयवाचक सर्वनाम:- सर्वनाम के जिस रूप से हमे किसी बात या वस्तु का निश्चत रूप से बोध होता है, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिस सर्वनाम से वक्ता के पास या दूर की किसी वस्तु के निश्र्चय का बोध होता है, उसे 'निश्र्चयवाचक सर्वनाम' कहते हैं।
सरल शब्दों में- जो सर्वनाम शब्द किसी निश्चित व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना की ओर संकेत करे, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। 
जैसे- यह, वह, ये, वे आदि।
उदाहरण- पास की वस्तु के लिए- 'यह' कोई नया काम नहीं है; दूर की वस्तु के लिए- रोटी मत खाओ, क्योंकि 'वह' जली है।
(3) अनिश्चयवाचक सर्वनाम:-जिस सर्वनाम शब्द से किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध न हो, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते है। 
जैसे- कोई, कुछ, किसी आदि।
उदाहरण- 'कोई'- ऐसा न हो कि 'कोई' आ जाय; 
'कुछ'- उसने 'कुछ' नहीं खाया।
(4)संबंधवाचक सर्वनाम :-जिन सर्वनाम शब्दों का दूसरे सर्वनाम शब्दों से संबंध ज्ञात हो तथा जो शब्द दो वाक्यों को जोड़ते है, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते है।
जैसे- जो, जिसकी, सो, जिसने, जैसा, वैसा आदि।
उदाहरण- जैसा करेगा वैसा भरेगा।
जो परिश्रम करते हैं, वे सुखी रहते हैं। 
वह 'जो' न करे, 'सो' थोड़ा
(5)प्रश्नवाचक सर्वनाम :-जो सर्वनाम शब्द सवाल पूछने के लिए प्रयुक्त होते है, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते है।
सरल शब्दों में- प्रश्र करने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है, उन्हें 'प्रश्रवाचक सर्वनाम' कहते है। 
जैसे- कौन, क्या, किसने आदि।
उदाहरण- टोकरी में क्या रखा है।
बाहर कौन खड़ा है।
तुम क्या खा रहे हो ?
यहाँ पर यह ध्यान रखना चाहिए कि 'कौन' का प्रयोग चेतन जीवों के लिए और 'क्या' का प्रयोग जड़ पदार्थो के लिए होता है।
(6) निजवाचक सर्वनाम :-'निज' का अर्थ होता है- अपना और 'वाचक का अर्थ होता है- बोध (ज्ञान) कराने वाला अर्थात 'निजवाचक' का अर्थ हुआ- अपनेपन का बोध कराना।
इस प्रकार,
जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग कर्ता के साथ अपनेपन का ज्ञान कराने के लिए किया जाए, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते है।
जैसे- अपने आप, निजी, खुद आदि।
'आप' शब्द का प्रयोग पुरुषवाचक तथा निजवाचक सर्वनाम-दोनों में होता है। 
उदाहरण- 
आप कल दफ्तर नहीं गए थे। (मध्यम पुरुष- आदरसूचक)
आप मेरे पिता श्री बसंत सिंह हैं। (अन्य पुरुष-आदरसूचक-परिचय देते समय)
ईश्वर भी उन्हीं का साथ देता है, जो अपनी मदद आप करता है। (निजवाचक सर्वनाम)
'निजवाचक सर्वनाम' का रूप 'आप' है। लेकिन पुरुषवाचक के अन्यपुरुषवाले 'आप' से इसका प्रयोग बिलकुल अलग है। यह कर्ता का बोधक है, पर स्वयं कर्ता का काम नहीं करता। पुरुषवाचक 'आप' बहुवचन में आदर के लिए प्रयुक्त होता है। जैसे- आप मेरे सिर-आखों पर है; आप क्या राय देते है ? किन्तु, निजवाचक 'आप' एक ही तरह दोनों वचनों में आता है और तीनों पुरुषों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
निजवाचक सर्वनाम 'आप' का प्रयोग निम्नलिखित अर्थो में होता है-
(क) निजवाचक 'आप' का प्रयोग किसी संज्ञा या सर्वनाम के अवधारण (निश्र्चय) के लिए होता है। जैसे- मैं 'आप' वहीं से आया हूँ; मैं 'आप' वही कार्य कर रहा हूँ।
(ख) निजवाचक 'आप' का प्रयोग दूसरे व्यक्ति के निराकरण के लिए भी होता है। जैसे- उन्होंने मुझे रहने को कहा और 'आप' चलते बने; वह औरों को नहीं, 'अपने' को सुधार रहा है।
(ग) सर्वसाधारण के अर्थ में भी 'आप' का प्रयोग होता है। जैसे- 'आप' भला तो जग भला; 'अपने' से बड़ों का आदर करना उचित है।
(घ) अवधारण के अर्थ में कभी-कभी 'आप' के साथ 'ही' जोड़ा जाता है। जैसे- मैं 'आप ही' चला आता था; यह काम 'आप ही'; मैं यह काम 'आप ही' कर लूँगा।
संयुक्त सर्वनाम
रूस के हिन्दी वैयाकरण डॉ० दीमशित्स ने एक और प्रकार के सर्वनाम का उल्लेख किया है और उसे 'संयुक्त सर्वनाम' कहा है। उन्हीं के शब्दों में, 'संयुक्त सर्वनाम' पृथक श्रेणी के सर्वनाम हैं। सर्वनाम के सब भेदों से इनकी भित्रता इसलिए है, क्योंकि उनमें एक शब्द नहीं, बल्कि एक से अधिक शब्द होते हैं। संयुक्त सर्वनाम स्वतन्त्र रूप से या संज्ञा-शब्दों के साथ भी प्रयुक्त होता है।
इसका उदाहरण कुछ इस प्रकार है- जो कोई, सब कोई, हर कोई, और कोई, कोई और, जो कुछ, सब कुछ, और कुछ, कुछ और, कोई एक, एक कोई, कोई भी, कुछ एक, कुछ भी, कोई-न-कोई, कुछ-न-कुछ, कुछ-कुछ, कोई-कोई इत्यादि।

सर्वनाम के रूपान्तर (लिंग, वचन और कारक)

सर्वनाम का रूपान्तर पुरुष, वचन और कारक की दृष्टि से होता है। इनमें लिंगभेद के कारण रूपान्तर नहीं होता। जैसे-
वह खाता है। 
वह खाती है।
संज्ञाओं के समान सर्वनाम के भी दो वचन होते हैं- एकवचन और बहुवचन। 
पुरुषवाचक और निश्र्चयवाचक सर्वनाम को छोड़ शेष सर्वनाम विभक्तिरहित बहुवचन में एकवचन के समान रहते हैं।
सर्वनाम में केवल सात कारक होते है। सम्बोधन कारक नहीं होता। 
कारकों की विभक्तियाँ लगने से सर्वनामों के रूप में विकृति आ जाती है। जैसे-
मैं- मुझको, मुझे, मुझसे, मेरा; तुम- तुम्हें, तुम्हारा; हम- हमें, हमारा; वह- उसने, उसको उसे, उससे, उसमें, उन्होंने, उनको; यह- इसने, इसे, इससे, इन्होंने, इनको, इन्हें, इनसे; कौन- किसने, किसको, किसे।

सर्वनाम की कारक-रचना (रूप-रचना)

संज्ञा शब्दों की भाँति ही सर्वनाम शब्दों की भी रूप-रचना होती। सर्वनाम शब्दों के प्रयोग के समय जब इनमें कारक चिह्नों का प्रयोग करते हैं, तो इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है।
('मैं' उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्तामैं, मैंनेहम, हमने
कर्ममुझे, मुझकोहमें, हमको
करणमुझसेहमसे
सम्प्रदानमुझे, मेरे लिएहमें, हमारे लिए
अपादानमुझसेहमसे
सम्बन्धमेरा, मेरे, मेरीहमारा, हमारे, हमारी
अधिकरणमुझमें, मुझपरहममें, हमपर
('तू', 'तुम' मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्तातू, तूनेतुम, तुमने, तुमलोगों ने
कर्मतुझको, तुझेतुम्हें, तुमलोगों को
करणतुझसे, तेरे द्वारातुमसे, तुम्हारे से, तुमलोगों से
सम्प्रदानतुझको, तेरे लिए, तुझेतुम्हें, तुम्हारे लिए, तुमलोगों के लिए
अपादानतुझसेतुमसे, तुमलोगों से
सम्बन्धतेरा, तेरी, तेरेतुम्हारा-री, तुमलोगों का-की
अधिकरणतुझमें, तुझपरतुममें, तुमलोगों में-पर
('वह' अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्तावह, उसनेवे, उन्होंने
कर्मउसे, उसकोउन्हें, उनको
करणउससे, उसके द्वाराउनसे, उनके द्वारा
सम्प्रदानउसको, उसे, उसके लिएउनको, उन्हें, उनके लिए
अपादानउससेउनसे
सम्बन्धउसका, उसकी, उसकेउनका, उनकी, उनके
अधिकरणउसमें, उसपरउनमें, उनपर
('यह' निश्चयवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्तायह, इसनेये, इन्होंने
कर्मइसको, इसेये, इनको, इन्हें
करणइससेइनसे
सम्प्रदानइसे, इसकोइन्हें, इनको
अपादानइससेइनसे
सम्बन्धइसका, की, केइनका, की, के
अधिकरणइसमें, इसपरइनमें, इनपर
('आप' आदरसूचक)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्ताआपनेआपलोगों ने
कर्मआपकोआपलोगों को
करणआपसेआपलोगों से
सम्प्रदानआपको, के लिएआपलोगों को, के लिए
अपादानआपसेआपलोगों से
सम्बन्धआपका, की, केआपलोगों का, की, के
अधिकरणआप में, परआपलोगों में, पर
('कोई' अनिश्चयवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्ताकोई, किसनेकिन्हीं ने
कर्मकिसी कोकिन्हीं को
करणकिसी सेकिन्हीं से
सम्प्रदानकिसी को, किसी के लिएकिन्हीं को, किन्हीं के लिए
अपादानकिसी सेकिन्हीं से
सम्बन्धकिसी का, किसी की, किसी केकिन्हीं का, किन्हीं की, किन्हीं के
अधिकरणकिसी में, किसी परकिन्हीं में, किन्हीं पर
('जो' संबंधवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्ताजो, जिसनेजो, जिन्होंने
कर्मजिसे, जिसकोजिन्हें, जिनको
करणजिससे, जिसके द्वाराजिनसे, जिनके द्वारा
सम्प्रदानजिसको, जिसके लिएजिनको, जिनके लिए
अपादानजिससे (अलग होने)जिनसे (अलग होने)
संबंधजिसका, जिसकी, जिसकेजिनका, जिनकी, जिनके
अधिकरणजिसपर, जिसमेंजिनपर, जिनमें
('कौन' प्रश्नवाचक सर्वनाम)
कारकएकवचनबहुवचन
कर्ताकौन, किसनेकौन, किन्होंने
कर्मकिसे, किसको, किसकेकिन्हें, किनको, किनके
करणकिससे, किसके द्वाराकिनसे, किनके द्वारा
सम्प्रदानकिसके लिए, किसकोकिनके लिए, किनको
अपादानकिससे (अलग होने)किनसे (अलग होने)
संबंधकिसका, किसकी, किसकेकिनका, किनकी, किनके
अधिकरणकिसपर, किसमेंकिनपर, किनमें

सर्वनाम का पद-परिचय

सर्वनाम का पद-परिचय करते समय सर्वनाम, सर्वनाम का भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक और अन्य पदों से उसका सम्बन्ध बताना पड़ता है। 
उदाहरण- वह अपना काम करता है।
इस वाक्य में, 'वह' और 'अपना' सर्वनाम है। इनका पद-परिचय होगा-
वह- पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, पुलिंग, एकवचन, कर्ताकारक, 'करता है' क्रिया का कर्ता।
अपना- निजवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, पुंलिंग, एकवचन, सम्बन्धकारक, 'काम' संज्ञा का विशेषण।

काल (Tense) की परिभाषा

क्रिया के जिस रूप से कार्य करने या होने के समय का ज्ञान होता है उसे 'काल' कहते है। 
दूसरे शब्दों में- क्रिया के उस रूपान्तर को काल कहते है, जिससे उसके कार्य-व्यापर का समय और उसकी पूर्ण अथवा अपूर्ण अवस्था का बोध हो।
जैसे-
(1) बच्चे खेल रहे हैं। मैडम पढ़ा रही हैं। 
(2)बच्चे खेल रहे थे। मैडम पढ़ा रही थी।
(3)बच्चे खेलेंगे। मैडम पढ़ायेंगी।
पहले वाक्य में क्रिया वर्तमान समय में हो रही है। दूसरे वाक्य में क्रिया पहले ही समाप्त हो चुकी थी तथा तीसरे वाक्य की क्रिया आने वाले समय में होगी। इन वाक्यों की क्रियाओं से कार्य के होने का समय प्रकट हो रहा है।

काल के भेद-

काल के तीन भेद होते है- 
(1)वर्तमान काल (present Tense) - जो समय चल रहा है। 
(2)भूतकाल(Past Tense) - जो समय बीत चुका है। 
(3)भविष्यत काल (Future Tense)- जो समय आने वाला है। 
(1) वर्तमान काल:- क्रिया के जिस रूप से वर्तमान में चल रहे समय का बोध होता है, उसे वर्तमान काल कहते है।
जैसे- पिता जी समाचार सुन रहे हैं। 
पुजारी पूजा कर रहा है। 
प्रियंका स्कूल जाती हैं। 
उपर्युक्त वाक्यों में क्रिया के वर्तमान समय में होने का पता चल रहा है। अतः ये सभी क्रियाएँ वर्तमान काल की क्रियाएँ हैं।
वर्तमान कल की पहचान के लिए वाक्य के अन्त में 'ता, ती, ते, है, हैं' आदि आते है।

वर्तमान काल के भेद

वर्तमान काल के पाँच भेद होते है-
(i)सामान्य वर्तमानकाल 
(ii)तत्कालिक वर्तमानकाल 
(iii)पूर्ण वर्तमानकाल 
(iv)संदिग्ध वर्तमानकाल 
(v)संभाव्य वर्तमानकाल
(i)सामान्य वर्तमानकाल :-क्रिया का वह रूप जिससे क्रिया का वर्तमानकाल में होना पाया जाय, 'सामान्य वर्तमानकाल' कहलाता है।
दूसरे शब्दों में- जो क्रिया वर्तमान में सामान्य रूप से होती है, वह सामान्य वर्तमान काल की क्रिया कहलाती है। 
जैसे- वह आता है। वह देखता है। दादी माला जपती हैं।
(ii)तत्कालिक वर्तमानकाल:-इससे यह पता चलता है कि क्रिया वर्तमानकाल में हो रही है।
जैसे- मै पढ़ रहा हूँ; वह जा रहा है।
(iii)पूर्ण वर्तमानकाल :- इससे वर्तमानकाल में कार्य की पूर्ण सिद्धि का बोध होता है।
जैसे- वह आया है; सीता ने पुस्तक पढ़ी है।
(iv)संदिग्ध वर्तमानकाल :- जिससे क्रिया के होने में सन्देह प्रकट हो, पर उसकी वर्तमानकाल में सन्देह न हो। उसे संदिग्ध वर्तमानकाल कहते हैं। 
सरल शब्दों में- जिस क्रिया के वर्तमान समय में पूर्ण होने में संदेह हो, उसे संदिग्ध वर्तमानकाल कहते हैं।
जैसे- राम खाता होगा; वह पढ़ता होगा। 
उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाओं के होने में संदेह है। अतः ये संदिग्ध वर्तमान काल की क्रियाएँ हैं।
(v)सम्भाव्य वर्तमानकाल :-इससे वर्तमानकाल में काम के पूरा होने की सम्भवना रहती है।
जैसे- वह आया हो; वह लौटा हो।
(2)भूतकाल :- क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय का बोध होता है, उसे भूतकाल कहते है।
सरल शब्दों में- जिससे क्रिया से कार्य की समाप्ति का बोध हो, उसे भूतकाल की क्रिया कहते हैं।
जैसे- वह खा चुका था; राम ने अपना पाठ याद किया; मैंने पुस्तक पढ़ ली थी। 
उपर्युक्त सभी वाक्य बीते हुए समय में क्रिया के होने का बोध करा रहे हैं। अतः ये भूतकाल के वाक्य है।
भूतकाल को पहचानने के लिए वाक्य के अन्त में 'था, थे, थी' आदि आते हैं।

भूतकाल के भेद

भूतकाल के छह भेद होते है-
(i)सामान्य भूतकाल
(ii)आसन भूतकाल
(iii)पूर्ण भूतकाल 
(iv)अपूर्ण भूतकाल 
(v)संदिग्ध भूतकाल 
(vi)हेतुहेतुमद् भूत
(i)सामान्य भूतकाल :- जिससे भूतकाल की क्रिया के विशेष समय का ज्ञान न हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं।
दूसरे शब्दों में-क्रिया के जिस रूप से काम के सामान्य रूप से बीते समय में पूरा होने का बोध हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं।
जैसे- मोहन आया।
सीता गयी। 
श्रीराम ने रावण को मारा 
उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाएँ बीते हुए समय में पूरी हो गई। अतः ये सामान्य भूतकाल की क्रियाएँ हैं।
(ii)आसन्न भूतकाल :-क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया अभी कुछ समय पहले ही पूर्ण हुई है, उसे आसन्न भूतकाल कहते हैं। 
इससे क्रिया की समाप्ति निकट भूत में या तत्काल ही सूचित होती है।
जैसे- मैने आम खाया हैं। 
मैं अभी सोकर उठी हूँ। 
अध्यापिका पढ़ाकर आई हैं। 
उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाएँ अभी-अभी पूर्ण हुई हैं। इसलिए ये आसन्न भूतकाल की क्रियाएँ हैं।
(iii)पूर्ण भूतकाल :- क्रिया के उस रूप को पूर्ण भूत कहते है, जिससे क्रिया की समाप्ति के समय का स्पष्ट बोध होता है कि क्रिया को समाप्त हुए काफी समय बीता है। 
क्रिया के जिस रूप से उसके बहुत पहले पूर्ण हो जाने का पता चलता है, उसे पूर्ण भूतकाल कहते हैं।
जैसे- उसने श्याम को मारा था।
अंग्रेजों ने भारत पर राज किया था।
महादेवी वर्मा ने संस्मरण लिखे थे। 
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाएँ अपने भूतकाल में पूर्ण हो चुकी थीं। अतः ये पूर्ण भूतकाल की क्रियाएँ हैं। 
पूर्ण भूतकाल में क्रिया के साथ 'था, थी, थे, चुका था, चुकी थी, चुके थे आदि लगता है।
(iv)अपूर्ण भूतकाल :- इससे यह ज्ञात होता है कि क्रिया भूतकाल में हो रही थी, किन्तु उसकी समाप्ति का पता नही चलता।
जैसे- सुरेश गीत गा रहा था।
रीता सो रही थी। 
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाएँ से कार्य के अतीत में आरंभ होकर, अभी पूरा न होने का पता चल रहा है। अतः ये अपूर्ण भूतकाल की क्रियाएँ हैं।
(v)संदिग्ध भूतकाल :- भूतकाल की क्रिया के जिस रूप से उसके भूतकाल में पूरा होने में संदेह हो, उसे संदिग्ध भूतकाल कहते है।
इसमें यह सन्देह बना रहता है कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ या नही।
जैसे- तू गाया होगा। 
बस छूट गई होगी।
दुकानें बंद हो चुकी होगी।
उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाएँ से भूतकाल में काम पूरा होने में संदेह का पता चलता है। अतः ये संदिग्ध भूतकाल की क्रियाएँ हैं।
(vi)हेतुहेतुमद् भूतकाल :-यदि भूतकाल में एक क्रिया के होने या न होने पर दूसरी क्रिया का होना या न होना निर्भर करता है, तो वह हेतुहेतुमद् भूतकाल क्रिया कहलाती है। 
इससे यह पता चलता है कि क्रिया भूतकाल में होनेवाली थी, पर किसी कारण न हो सका।
यदि तुमने परिश्रम किया होता, तो पास हो जाते। 
यदि वर्षा होती, तो फसल अच्छी होती।
उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाएँ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। पहली क्रिया के न होने पर दूसरी क्रिया भी पूरी नहीं होती है। अतः ये हेतुहेतुमद् भूतकाल की क्रियाएँ हैं।
(3)भविष्यत काल:-भविष्य में होनेवाली क्रिया को भविष्यतकाल की क्रिया कहते है।
दूसरे शब्दो में- क्रिया के जिस रूप से काम का आने वाले समय में करना या होना प्रकट हो, उसे भविष्यतकाल कहते है।
जैसे- वह कल घर जाएगा। 
हम सर्कस देखने जायेंगे।
किसान खेत में बीज बोयेगा। 
उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाएँ से पता चलता है कि ये सब कार्य आने वाले समय में पूरे होंगे। अतः ये भविष्यत काल की क्रियाएँ हैं।
भविष्यत काल की पहचान के लिए वाक्य के अन्त में 'गा, गी, गे' आदि आते है।

भविष्यत काल के भेद

भविष्यतकाल के तीन भेद होते है-
(i)सामान्य भविष्यत काल 
(ii)सम्भाव्य भविष्यत काल
(iii)हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्यत काल
(i)सामान्य भविष्यत काल :- क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में सामान्य ढंग से होने का पता चलता है, उसे सामान्य भविष्यत काल कहते हैं। 
इससे यह प्रकट होता है कि क्रिया सामान्यतः भविष्य में होगी।
जैसे- बच्चे कैरमबोर्ड खेलेंगे। 
वह घर जायेगा
दीपक अख़बार बेचेगा
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाएँ भविष्य में सामान्य रूप से काम के होने की सूचना दे रही हैं। अतः ये सामान्य भविष्यत काल की क्रियाएँ हैं।
(ii)सम्भाव्य भविष्यत काल:-क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में होने की संभावना का पता चलता है, उसे सम्भाव्य भविष्यत काल कहते हैं। 
जिससे भविष्य में किसी कार्य के होने की सम्भावना हो।
जैसे- शायद चोर पकड़ा जाए। 
परीक्षा में शायद मुझे अच्छे अंक प्राप्त हों।
उपर्युक्त वाक्यों में क्रियाओं के भविष्य में होने की संभावना है। ये पूर्ण रूप से होंगी, ऐसा निश्चित नहीं होता। अतः ये सम्भाव्य भविष्यत काल की क्रियाएँ हैं।
(iii)हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्यत काल:- इसमे एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया के होने पर निर्भर करता है।
जैसे- वह आये तो मै जाऊ; वह कमाये तो मैं खाऊँ।

विशेषण(Adjective)की परिभाषा

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताते है उन्हें विशेषण कहते है। 
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- जो किसी संज्ञा की विशेषता (गुण, धर्म आदि )बताये उसे विशेषण कहते है।
दूसरे शब्दों में- विशेषण एक ऐसा विकारी शब्द है, जो हर हालत में संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है।
जैसे- यह भूरी गाय है, आम खट्टे है।
उपयुक्त वाक्यों में 'भूरी' और 'खट्टे' शब्द गाय और आम (संज्ञा )की विशेषता बता रहे है। इसलिए ये शब्द विशेषण है।
इसका अर्थ यह है कि विशेषणरहित संज्ञा से जिस वस्तु का बोध होता है, विशेषण लगने पर उसका अर्थ सिमित हो जाता है। जैसे- 'घोड़ा', संज्ञा से घोड़ा-जाति के सभी प्राणियों का बोध होता है, पर 'काला घोड़ा' कहने से केवल काले घोड़े का बोध होता है, सभी तरह के घोड़ों का नहीं।
यहाँ 'काला' विशेषण से 'घोड़ा' संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित (सिमित) हो गयी है। कुछ वैयाकरणों ने विशेषण को संज्ञा का एक उपभेद माना है; क्योंकि विशेषण भी वस्तु का परोक्ष नाम है। लेकिन, ऐसा मानना ठीक नहीं; क्योंकि विशेषण का उपयोग संज्ञा के बिना नहीं हो सकता।
विशेष्य- विशेषण शब्द जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, वे विशेष्य कहलाते हैं। 
दूसरे शब्दों में-जिस शब्द की विशेषता प्रकट की जाये, उसे विशेष्य कहते है।
जैसे- उपयुक्त विशेषण के उदाहरणों में 'गाय' और 'आम' विशेष्य है क्योंकि इन्हीं की विशेषता बतायी गयी है।
प्रविशेषण- कभी-कभी विशेषणों के भी विशेषण बोले और लिखे जाते है। जो शब्द विशेषण की विशेषता बताते है, वे प्रविशेषण कहलाते है।
जैसे- यह लड़की बहुत अच्छी है। 
मै पूर्ण स्वस्थ हुँ।
उपर्युक्त वाक्य में 'बहुत' 'पूर्ण' शब्द 'अच्छी' तथा 'स्वस्थ' (विशेषण )की विशेषता बता रहे है, इसलिए ये शब्द प्रविशेषण है।

विशेषण के प्रकार

विशेषण निम्नलिखित पाँच प्रकार होते है -
(1)गुणवाचक विशेषण (Adjective of Quality)
(2)संख्यावाचक विशेषण (Adjective of Number)
(3)परिमाणवाचक विशेषण (Adjective of Quantity)
(4)संकेतवाचक विशेषण (Demonstractive Adjective)
(5)व्यक्तिवाचक विशेषण (Proper Adjective)
(1)गुणवाचक विशेषण :- वे विशेषण शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम शब्द (विशेष्य) के गुण-दोष, रूप-रंग, आकार, स्वाद, दशा, अवस्था, स्थान आदि की विशेषता प्रकट करते हैं, गुणवाचक विशेषण कहलाते है।
जैसे- गुण- वह एक अच्छा आदमी है।
रंग- काला टोपी, लाल रुमाल।
आकार- उसका चेहरा गोल है।
अवस्था- भूखे पेट भजन नहीं होता।
गुणवाचक विशेषण में विशेष्य के साथ कैसा/कैसी लगाकर प्रश्न करने पर उत्तर प्राप्त किया जाता है, जो विशेषण होता है।
विशेषणों में इनकी संख्या सबसे अधिक है। इनके कुछ मुख्य रूप इस प्रकार हैं। 
गुण- भला, उचित, अच्छा, ईमानदार, सरल, विनम्र, बुद्धिमानी, सच्चा, दानी, न्यायी, सीधा, शान्त आदि।
दोष बुरा, अनुचित, झूठा, क्रूर, कठोर, घमंडी, बेईमान, पापी, दुष्ट आदि।
रूप/रंग- लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरा, चमकीला, धुँधला, फीका।
आकार- गोल, चौकोर, सुडौल, समान, पीला, सुन्दर, नुकीला, लम्बा, चौड़ा, सीधा, तिरछा, बड़ा, छोटा, चपटा, ऊँचा, मोटा, पतला आदि।
स्वाद- मीठा, कड़वा, नमकीन, तीखा, खट्टा, सुगंधित आदि।
दशा/अवस्था- दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, गीला, सूखा, घना, गरीब, उद्यमी, पालतू, रोगी, स्वस्थ, कमजोर, हल्का, बूढ़ा आदि।
स्थान- उजाड़, चौरस, भीतरी, बाहरी, उपरी, सतही, पूरबी, पछियाँ, दायाँ, बायाँ, स्थानीय, देशीय, क्षेत्रीय, असमी, पंजाबी, अमेरिकी, भारतीय, विदेशी, ग्रामीण आदि।
काल- नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ, नवीन, सायंकालीन, आधुनिक, वार्षिक, मासिक आदि।
स्थिति/दिशा- निचला, ऊपरी, उत्तरी, पूर्वी आदि।
स्पर्श- मुलायम, सख्त, ठंड, गर्म, कोमल, ख़ुरदरा आदि।
द्रष्टव्य- गुणवाचक विशेषणों में 'सा' सादृश्यवाचक पद जोड़कर गुणों को कम भी किया जाता है। जैसे- बड़ा-सा, ऊँची-सी, पीला-सा, छोटी-सी।
(2)संख्यावाचक विशेषण:-वे विशेषण शब्द जो संज्ञा अथवा सर्वनाम (विशेष्य) की संख्या का बोध कराते हैं, संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।
बढ़ईगिरी के निम्नलिखित औजार भी होने चाहिए- पाँच हथौड़े, तीन बसूले, पाँच छोटी हथौड़ियाँ, दो एरन, तीन बम, दस छोटी-बड़ी छेनियाँ, चार रंदे, एक सालनी, चार केतियाँ, चार छोटी-बड़ी बेधनियाँ, चार आरियाँ, पाँच छोटी-बड़ी सँड़ासियाँ, बीस रतल कीलें-छोटी और बड़ी, एक मोंगरा (लकड़ी का हथौड़ा), मोची के औजार।
उपर्युक्त अनुच्छेद में विभिन्न प्रकार के औजारों की संख्या की बात की गई है। पाँच, तीन, दो, दस, चार, एक, बीस आदि संख्यावाची विशेषण हैं। ये विशेषण शब्द हथौड़े, बसूले, हथौड़ियाँ, एरन, बम, छेनियाँ, रंदे, सालनी आदि विशेष्य शब्दों की विशेषता बता रहे हैं।

संख्यावाचक विशेषण के भेद

संख्यावाचक विशेषण के दो भेद होते है-
(i)निश्चित संख्यावाचक विशेषण 
(ii)अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
(i)निश्चित संख्यावाचक विशेषण :-वे विशेषण शब्द जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध कराते हैं,
निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।
मेरी कक्षा में चालीस छात्र हैं। 
कमरे में एक पंखा घूम रहा है। 
डाल पर दो चिड़ियाँ बैठी हैं। 
प्रार्थना-सभा में सौ लोग उपस्थित थे।
इन सभी वाक्यों में विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध हो रहा है; जैसे- कक्षा में कितने छात्र हैं?- चालीस,कमरे में कितने पंखे घूम रहे हैं?- एक, डाल पर कितनी चिड़ियाँ बैठी हैं?- दो तथा प्रार्थना-सभा में कितने लोग उपस्थित थे?- सौ।
(ii)अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण :- वे विशेषण शब्द जो विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध न कराते हों, वे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।
बम के भय से कुछ लोग बेहोश हो गए। 
कक्षा में बहुत कम छात्र उपस्थित थे। 
कुछ फल खाकर ही मेरी भूख मिट गई। 
कुछ देर बाद हम चले जाएँगे।
इन सभी वाक्यों में विशेष्य की निश्चित संख्या का बोध नहीं हो रहा है? जैसे-कितने लोग दिखे?- कम,कितने लोग बेहोश हो गए?- कुछ, कितने छात्र उपस्थित थे?- कम, कितने फल खाकर भूख मिट गई?-कुछ, कितनी देर बाद हम चले जाएँगे?- कुछ।
प्रयोग के अनुसार निश्चित संख्यावाचक विशेषण के निम्नलिखित प्रकार हैं-
(क) गणनावाचक विशेषण- एक, दो, तीन। 
(ख) क्रमवाचक विशेषण- पहला, दूसरा, तीसरा। 
(ग) आवृत्तिवाचक विशेषण- दूना, तिगुना, चौगुना। 
(घ) समुदायवाचक विशेषण- दोनों, तीनों, चारों। 
(ड़) प्रत्येकबोधक विशेषण- प्रत्येक, हर-एक, दो-दो, सवा-सवा।
गणनावाचक संख्यावाचक विशेषण के भी दो भेद है-
(i) पूर्णांकबोधक विशेषण (ii) अपूर्णांकबोधक विशेषण
(i) पूर्णांकबोधक विशेषण- जैसे- एक, दो, चार, सौ, हजार।
(ii) अपूर्णांकबोधक विशेषण- जैसे- पाव, आध, पौन, सवा। 
पूर्णांकबोधक विशेषण शब्दों में लिखे जाते है या अंकों में। 
बड़ी-बड़ी निश्चित संख्याएँ अंकों में और छोटी-छोटी तथा बड़ी-बड़ी अनिश्चित संख्याएँ शब्दों में लिखनी चाहिए।
(3)परिमाणवाचक विशेषण :-जिन विशेषण शब्दों से किसी वस्तु के माप-तौल संबंधी विशेषता का बोध होता है, वे परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं। 
यह किसी वस्तु की नाप या तौल का बोध कराता है।
जैसे- 'सेर' भर दूध, 'तोला' भर सोना, 'थोड़ा' पानी, 'कुछ' पानी, 'सब' धन, 'और' घी लाओ, 'दो' लीटर दूध, 'बहुत' चीनी इत्यादि।

परिमाणवाचक विशेषण के भेद

परिमाणवाचक विशेषण के दो भेद होते है-
(i) निश्चित परिमाणवाचक 
(ii)अनिश्चित परिमाणवाचक
(i) निश्चित परिमाणवाचक:-जो विशेषण शब्द किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध कराते हैं, वे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है।
जैसे- 'दो सेर' घी, 'दस हाथ' जगह, 'चार गज' मलमल, 'चार किलो' चावल।
(ii)अनिश्चित परिमाणवाचक :-जो विशेषण शब्द किसी वस्तु की निश्चित मात्रा अथवा माप-तौल का बोध नहीं कराते हैं, वे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहलाते है।
जैसे- 'सब' धन, 'कुछ' दूध, 'बहुत' पानी।
(4)संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण :- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की ओर संकेत करते है या जो शब्द सर्वनाम होते हुए भी किसी संज्ञा से पहले आकर उसकी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण कहते है।
दूसरे शब्दों में- ( मैं, तू, वह ) के सिवा अन्य सर्वनाम जब किसी संज्ञा के पहले आते हैं, तब वे 'संकेतवाचक' या 'सार्वनामिक विशेषण' कहलाते हैं।
सरल शब्दों में- जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग संज्ञा के आगे उनके विशेषण के रूप में होता है, उन्हें सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
जैसे- वह नौकर नहीं आया; यह घोड़ा अच्छा है।
यहाँ 'नौकर' और 'घोड़ा' संज्ञाओं के पहले विशेषण के रूप में 'वह' और 'यह' सर्वनाम आये हैं। अतः, ये सार्वनामिक विशेषण हैं।

सार्वनामिक विशेषण के भेद

व्युत्पत्ति के अनुसार सार्वनामिक विशेषण के भी दो भेद है-
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण 
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण- जो बिना रूपान्तर के संज्ञा के पहले आता हैं। 
जैसे- 'यह' घर; वह लड़का; 'कोई' नौकर इत्यादि।
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण- जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं। 
जैसे- 'ऐसा' आदमी; 'कैसा' घर; 'जैसा' देश इत्यादि।
(5)व्यक्तिवाचक विशेषण:-जिन विशेषण शब्दों की रचना व्यक्तिवाचक संज्ञा से होती है, उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहते है।
जैसे- इलाहाबाद से इलाहाबादी, जयपुर से जयपुरी, बनारस से बनारसी।
उदाहरण- 'इलाहाबादी' अमरूद मीठे होते है।
विशेष्य और विशेषण में सम्बन्ध
विशेषण संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है और जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतायी जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं। 
वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- कभी विशेषण विशेष्य के पहले आता है और कभी विशेष्य के बाद।
प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के दो भेद है-
(1) विशेष्य-विशेषण (2) विधेय-विशेषण
(1) विशेष्य-विशेष- जो विशेषण विशेष्य के पहले आये, वह विशेष्य-विशेष होता है-
जैसे- रमेश 'चंचल' बालक है। सुनीता 'सुशील' लड़की है। 
इन वाक्यों में 'चंचल' और 'सुशील' क्रमशः बालक और लड़की के विशेषण हैं, जो संज्ञाओं (विशेष्य) के पहले आये हैं।
(2) विधेय-विशेषण- जो विशेषण विशेष्य और क्रिया के बीच आये, वहाँ विधेय-विशेषण होता है;
जैसे- मेरा कुत्ता 'काला' हैं। मेरा लड़का 'आलसी' है। इन वाक्यों में 'काला' और 'आलसी' ऐसे विशेषण हैं,
जो क्रमशः 'कुत्ता'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) तथा 'लड़का'(संज्ञा) और 'है'(क्रिया) के बीच आये हैं।
यहाँ दो बातों का ध्यान रखना चाहिए- (क) विशेषण के लिंग, वचन आदि विशेष्य के लिंग, वचन आदि के अनुसार होते हैं। जैसे- अच्छे लड़के पढ़ते हैं। आशा भली लड़की है। राजू गंदा लड़का है।
(ख) यदि एक ही विशेषण के अनेक विशेष्य हों तो विशेषण के लिंग और वचन समीपवाले विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार होंगे; जैसे- नये पुरुष और नारियाँ, नयी धोती और कुरता।

विशेषण शब्दों की रचना

हिंदी भाषा में विशेषण शब्दों की रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्दों के साथ उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगाकर की जाती है।
संज्ञा से विशेषण शब्दों की रचना
संज्ञाविशेषणसंज्ञाविशेषण
कथनकथितराधाराधेय
तुंदतुंदिलगंगागांगेय
धनधनवानदीक्षादीक्षित
नियमनियमितनिषेधनिषिद्ध
प्रसंगप्रासंगिकपर्वतपर्वतीय
प्रदेशप्रादेशिकप्रकृतिप्राकृतिक
बुद्धबौद्धभूमिभौमिक
मृत्युमर्त्यमुखमौखिक
रसायनरासायनिकराजनीतिराजनीतिक
लघुलाघवलोभलुब्ध/लोभी
वनवन्यश्रद्धाश्रद्धेय/श्रद्धालु
संसारसांसारिकसभासभ्य
उपयोगउपयोगी/उपयुक्तअग्निआग्नेय
आदरआदरणीयअणुआणविक
अर्थआर्थिकआशाआशित/आशान्वित/आशावानी
ईश्वरईश्वरीयइच्छाऐच्छिक
इच्छाऐच्छिकउदयउदित
उन्नतिउन्नतकर्मकर्मठ/कर्मी/कर्मण्य
क्रोधक्रोधालु, क्रोधीगृहस्थगार्हस्थ्य
गुणगुणवान/गुणीघरघरेलू
चिंताचिंत्य/चिंतनीय/चिंतितजलजलीय
जागरणजागरित/जाग्रततिरस्कारतिरस्कृत
दयादयालुदर्शनदार्शनिक
धर्मधार्मिककुंतीकौंतेय
समरसामरिकपुरस्कारपुरस्कृत
नगरनागरिकचयनचयनित
निंदानिंद्य/निंदनीयनिश्र्चयनिश्चित
परलोकपारलौकिकपुरुषपौरुषेय
पृथ्वीपार्थिवप्रमाणप्रामाणिक
बुद्धिबौद्धिकभूगोलभौगोलिक
मासमासिकमातामातृक
राष्ट्रराष्ट्रीयलोहालौह
लाभलब्ध/लभ्यवायुवायव्य/वायवीय
विवाहवैवाहिकशरीरशारीरिक
सूर्यसौर/सौर्यहृदयहार्दिक
क्षेत्रक्षेत्रीयआदिआदिम
आकर्षणआकृष्टआयुआयुष्मान
अंतअंतिमइतिहासऐतिहासिक
उत्कर्षउत्कृष्टउपकारउपकृत/उपकारक
उपेक्षाउपेक्षित/उपेक्षणीयकाँटाकँटीला
ग्रामग्राम्य/ग्रामीणग्रहणगृहीत/ग्राह्य
गर्वगर्वीलाघावघायल
जटाजटिलजहरजहरीला
तत्त्वतात्त्विकदेवदैविक/दैवी
दिनदैनिकदर्ददर्दनाक
विनतावैनतेयरक्तरक्तिम
सर्वनाम से विशेषण शब्दों की रचना
सर्वनामविशेषणसर्वनामविशेषण
कोईकोई-साजोजैसा
कौनकैसावहवैसा
मैंमेरा/मुझ-साहमहमारा
तुमतुम्हारायहऐसा
क्रिया से विशेषण शब्दों की रचना
क्रियाविशेषणक्रियाविशेषण
भूलनाभुलक्क़ड़खेलनाखिलाड़ी
पीनापियक्कड़लड़नालड़ाकू
अड़नाअड़ियलसड़नासड़ियल
घटनाघटितलूटनालुटेरा
पठपठितरक्षारक्षक
बेचनाबिकाऊकमानाकमाऊ
उड़नाउड़ाकूखानाखाऊ
पत्पतितमिलनमिलनसार
अव्यय से विशेषण शब्दों की रचना
अव्ययविशेषणअव्ययविशेषण
ऊपरऊपरीपीछेपिछला
नीचेनिचलाआगेअगला
भीतरभीतरीबाहरबाहरी

विशेषण की अवस्थायें या तुलना (Degree of Comparison)

विशेषण(Adjective) की तीन अवस्थायें होती है -
(i)मूलावस्था (Positive Degree)
(ii)उत्तरावस्था (Comparative Degree) 
(iii)उत्तमावस्था (Superlative Degree)
(i)मूलावस्था :-किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के गुण-दोष बताने के लिए जब विशेषणों का प्रयोग किया जाता है, तब वह विशेषण की मूलावस्था कहलाती है।
इस अवस्था में किसी विशेषण के गुण या दोष की तुलना दूसरी वस्तु से नही की जाती।
इसमे विशेषण अन्य किसी विशेषण से तुलित न होकर सीधे व्यक्त होता है।
कमल 'सुंदर' फूल होता है। 
आसमान में 'लाल' पतंग उड़ रही है। 
ऐश्वर्या राय 'खूबसूरत' हैं। 
वह अच्छी 'विद्याथी' है। इसमें कोई तुलना नहीं होती, बल्कि सामान्य विशेषता बताई जाती है।
(ii)उत्तरावस्था :- यह विशेषण का वह रूप होता है, जो दो विशेष्यो की विशेषताओं से तुलना करता है।
इसमें दो व्यक्ति, वस्तु अथवा प्राणियों के गुण-दोष बताते हुए उनकी आपस में तुलना की जाती है।
जैसे- तुम मेरे से 'अधिक सुन्दर' हो। 
वह तुम से 'सबसे अच्छी' लड़की है। 
राम मोहन से अधिक समझदार हैं।
(iii)उत्तमावस्था :- यह विशेषण का वह रूप है जो एक विशेष्य को अन्य सभी की तुलना में बढ़कर बताता है।
इसमें विशेषण द्वारा किसी वस्तु अथवा प्राणी को सबसे अधिक गुणशाली या दोषी बताया जाता है।
जैसे- तुम 'सबसे सुन्दर' हो। 
वह 'सबसे अच्छी' लड़की है।
हमारे कॉंलेज में नरेन्द्र 'सबसे अच्छा' खिलाड़ी है।
अन्य उदाहरण
मूलावस्थाउत्तरावस्थाउत्तमावस्था
लघुलघुतरलघुतम
अधिकअधिकतरअधिकतम
कोमलकोमलतरकोमलतम
सुन्दरसुन्दरतरसुन्दरतम
उच्चउच्चतरउच्त्तम
प्रियप्रियतरप्रियतम
निम्रनिम्रतरनिम्रतम
निकृष्टनिकृष्टतरनिकृष्टतम
महत्महत्तरमहत्तम

विशेषण की रूप रचना

विशेषणों की रूप-रचना निम्नलिखित अवस्थाओं में मुख्यतः संज्ञा, सर्वनाम और क्रिया में प्रत्यय लगाकर होती है-
विशेषण की रचना पाँच प्रकार के शब्दों से होती है-
(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा से- गाजीपुर से गाजीपुरी, मुरादाबाद से मुरादाबादी, गाँधीवाद से गाँधीवादी।
(2) जातिवाचक संज्ञा से- घर से घरेलू, पहाड़ से पहाड़ी, कागज से कागजी, ग्राम से ग्रामीण, शिक्षक से शिक्षकीय, परिवार से पारिवारिक।
(3) सर्वनाम से- यह से ऐसा (सार्वनामिक विशेषण), यह से इतने (संख्यावाचक विशेषण), यह से इतना (परिमाणवाचक विशेषण), जो से जैसे (प्रकारवाचक विशेषण), जितने (संख्यावाचक विशेषण), जितना (परिमाणवाचक विशेषण), वह से वैसा (सार्वनामिक विशेषण), उतने (संख्यावाचक विशेषण), उतना (परिमाणवाचक विशेषण)।
(4) भाववाचक संज्ञा से- भावना से भावुक, बनावट से बनावटी, एकता से एक, अनुराग से अनुरागी, गरमी से गरम, कृपा से कृपालु इत्यादि।
(5) क्रिया से- चलना से चालू, हँसना से हँसोड़, लड़ना से लड़ाकू, उड़ना से उड़छू, खेलना से खिलाड़ी, भागना से भगोड़ा, समझना से समझदार, पठ से पठित, कमाना से कमाऊ इत्यादि।
कुछ शब्द स्वंय विशेषण होते है और कुछ प्रत्यय लगाकर बनते है। जैसे -
(1)'ई' प्रत्यय से = जापान-जापानी, गुण-गुणी, स्वदेशी, धनी, पापी। 
(2) 'ईय' प्रत्यय से = जाति-जातीय, भारत-भारतीय, स्वर्गीय, राष्ट्रीय ।
(3)'इक' प्रत्यय से = सप्ताह-साप्ताहिक, वर्ष-वार्षिक, नागरिक, सामाजिक।
(4)'इन' प्रत्यय से = कुल-कुलीन, नमक-नमकीन, प्राचीन।
(5)'मान' प्रत्यय से = गति-गतिमान, श्री-श्रीमान।
(6)'आलु'प्रत्यय से = कृपा -कृपालु, दया-दयालु ।
(7)'वान' प्रत्यय से = बल-बलवान, धन-धनवान। 
(8)'इत' प्रत्यय से = नियम-नियमित, अपमान-अपमानित, आश्रित, चिन्तित । 
(9)'ईला' प्रत्यय से = चमक-चमकीला, हठ-हठीला, फुर्ती-फुर्तीला।

विशेषण का पद-परिचय

विशेषण के पद-परिचय में संज्ञा और सर्वनाम की तरह लिंग, वचन, कारक और विशेष्य बताना चाहिए।
उदाहरण- यह तुम्हें बापू के अमूल्य गुणों की थोड़ी-बहुत जानकारी अवश्य करायेगा। 
इस वाक्य में अमूल्य और थोड़ी-बहुत विशेषण हैं। इसका पद-परिचय इस प्रकार होगा-
अमूल्य- विशेषण, गुणवाचक, पुंलिंग, बहुवचन, अन्यपुरुष, सम्बन्धवाचक, 'गुणों' इसका विशेष्य। 
थोड़ी-बहुत- विशेषण, अनिश्र्चित संख्यावाचक, स्त्रीलिंग, कर्मवाचक, 'जानकारी' इसका विशेष्य।

संधि (Seam )की परिभाषा

दो वर्णों ( स्वर या व्यंजन ) के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। 
दूसरे अर्थ में- संधि का सामान्य अर्थ है मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द रचना होती है,
इसी को संधि कहते हैै।
उन पदों को मूल रूप में पृथक कर देना संधि विच्छेद हैै।
जैसे -हिम +आलय =हिमालय ( यह संधि है ), अत्यधिक = अति + अधिक ( यह संधि विच्छेद है )
  • यथा + उचित =यथोचित
  • यशः +इच्छा=यशइच्छ
  • अखि + ईश्वर =अखिलेश्वर
  • आत्मा + उत्सर्ग =आत्मोत्सर्ग
  • महा + ऋषि = महर्षि ,
  • लोक + उक्ति = लोकोक्ति
  • संधि निरथर्क अक्षरों मिलकर सार्थक शब्द बनती है। संधि में प्रायः शब्द का रूप छोटा हो जाता है। संधि संस्कृत का शब्द है।

संधि के भेद

वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है-
(1)स्वर संधि ( vowel sandhi )
(2)व्यंजन संधि ( Combination of Consonants )
(3)विसर्ग संधि( Combination Of Visarga )
(1)स्वर संधि (vowel sandhi) :- दो स्वरों से उतपन विकार अथवा रूप -परिवर्तन को स्वर संधि कहते है।
जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी , सूर्य + उदय = सूर्योदय , मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र , कवि + ईश्वर = कवीश्वर , महा + ईश = महेश .
इनके पाँच भेद होते है -
(i)दीर्घ संधि 
(ii)गुण संधि 
(iii)वृद्धि संधि 
(iv)यर्ण संधि
(v)अयादी संधि
(i)दीर्घ स्वर संधि-
नियम -दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है। यदि 'अ'',' 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ऋ' हो जाते है। जैसे-
अ+अ =आअत्र+अभाव =अत्राभाव
कोण+अर्क =कोणार्क
अ +आ =आशिव +आलय =शिवालय 
भोजन +आलय =भोजनालय
आ +अ =आविद्या +अर्थी =विद्यार्थी
लज्जा+अभाव =लज्जाभाव
आ +आ =आविद्या +आलय =विद्यालय
महा+आशय =महाशय
इ +इ =ईगिरि +इन्द्र =गिरीन्द्र
इ +ई =ईगिरि +ईश =गिरीश
ई +इ =ईमही +इन्द्र =महीन्द्र
ई +ई =ईपृथ्वी +ईश =पृथ्वीश
उ +उ =ऊभानु +उदय =भानूदय
ऊ +उ =ऊस्वयम्भू +उदय =स्वयम्भूदय
ऋ+ऋ=ऋपितृ +ऋण =पितृण
(ii) गुण स्वर संधि
नियम- यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'इ' या 'ई ' 'उ' या 'ऊ ' और 'ऋ' आये ,तो दोनों मिलकर क्रमशः 'ए', 'ओ' और 'अर' हो जाते है। जैसे-
अ +इ =एदेव +इन्द्र=देवन्द्र
अ +ई =एदेव +ईश =देवेश
आ +इ =एमहा +इन्द्र =महेन्द्र
अ +उ =ओचन्द्र +उदय =चन्द्रोदय
अ+ऊ =ओसमुद्र +ऊर्मि =समुद्रोर्मि
आ +उ=ओमहा +उत्स्व =महोत्स्व
आ +ऊ = ओगंगा+ऊर्मि =गंगोर्मि
अ +ऋ =अर्देव + ऋषि =देवर्षि
आ+ऋ =अर्महा+ऋषि =महर्षि
.
(iii) वृद्धि स्वर संधि
नियम -यदि 'अ' या 'आ' के बाद 'ए' या 'ऐ'आये, तो दोनों के स्थान में 'ऐ' तथा 'ओ' या 'औ' आये, तो दोनों के स्थान में 'औ' हो जाता है। जैसे-
अ +ए =ऐएक +एक =एकैक
अ +ऐ =ऐनव +ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्य
आ +ए=ऐमहा +ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य
सदा +एव =सदैव
अ +ओ =औपरम +ओजस्वी =परमौजस्वी
वन+ओषधि =वनौषधि
अ +औ =औपरम +औषध =परमौषध
आ +ओ =औमहा +ओजस्वी =महौजस्वी
आ +औ =औमहा +औषध =महौषध
(iv) यर्ण स्वर संधि
नियम- यदि'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद कोई भित्र स्वर आये, तो इ-ई का 'यू', 'उ-ऊ' का 'व्' और 'ऋ' का 'र्' हो जाता हैं। जैसे-
इ +अ =ययदि +अपि =यद्यपि
इ +आ = याअति +आवश्यक =अत्यावश्यक
इ +उ =युअति +उत्तम =अत्युत्तम
इ + ऊ = यूअति +उष्म =अत्यूष्म
उ +अ =वअनु +आय =अन्वय
उ +आ =वामधु +आलय =मध्वालय
उ + ओ = वोगुरु +ओदन= गुवौंदन
उ +औ =वौगुरु +औदार्य =गुवौंदार्य
ऋ+आ =त्रापितृ +आदेश=पित्रादेश
(v) अयादि स्वर संधि
नियम- यदि 'ए', 'ऐ' 'ओ', 'औ' के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) 'ए' का 'अय्', (ख ) 'ऐ' का 'आय्', (ग) 'ओ' का 'अव्' और (घ) 'औ' का 'आव' हो जाता है। जैसे-
(क) ने +अन =नयन 
चे +अन =चयन
शे +अन =शयन
श्रो+अन =श्रवन (पद मे 'र' होने के कारण 'न' का 'ण' हो गया)
(ख) नै +अक =नायक 
गै +अक =गायक
(ग) पो +अन =पवन
(घ) श्रौ+अन =श्रावण 
पौ +अन =पावन 
पौ +अक =पावक
श्रौ+अन =श्रावण ('श्रावण' के अनुसार 'न' का 'ण')
(2)व्यंजन संधि ( Combination of Consonants ) :- व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
कुछ नियम इस प्रकार हैं-
(1) यदि 'म्' के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो 'म्' का अनुस्वार हो जाता है या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है। जैसे- अहम् +कार =अहंकार
पम्+चम =पंचम
सम् +गम =संगम
(2) यदि 'त्-द्' के बाद 'ल' रहे तो 'त्-द्' 'ल्' में बदल जाते है और 'न्' के बाद 'ल' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के बाद 'ल्' हो जाता है। जैसे- उत्+लास =उल्लास
महान् +लाभ =महांल्लाभ
(3) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आये, या, य, र, ल, व, या कोई स्वर आये, तो 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प',के स्थान में अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे-
दिक्+गज =दिग्गज 
सत्+वाणी =सदवाणी
अच+अन्त =अजन्त 
षट +दर्शन =षड्दर्शन
वाक् +जाल =वगजाल 
अप् +इन्धन =अबिन्धन 
तत् +रूप =तद्रूप 
जगत् +आनन्द =जगदानन्द
दिक्+भ्रम =दिगभ्रम
(4) यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद 'न' या 'म' आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं। जैसे-
वाक्+मय =वाड्मय
अप् +मय =अम्मय 
षट्+मार्ग =षणमार्ग 
जगत् +नाथ=जगत्राथ 
उत् +नति =उत्रति 
षट् +मास =षण्मास
(5)सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में शकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है। जैसे-
स्+शरामस् +शेते =रामश्शेते
त्+चसत् +चित् =सच्चित्
त्+छमहत् +छात्र =महच्छत्र
त् +णमहत् +णकार =महण्णकार
ष्+तद्रष् +ता =द्रष्टा
त्+टबृहत् +टिट्टिभ=बृहटिट्टिभ
(6)यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों के बाद 'ह' आये, तो 'ह' पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है और 'ह्' के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण। जैसे-
उत्+हत =उद्धत
उत्+हार =उद्धार 
वाक् +हरि =वाग्घरि
(7) हस्व स्वर के बाद 'छ' हो, तो 'छ' के पहले 'च्' जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर के बाद 'छ' होने पर यह विकल्प से होता है। जैसे-
परि+छेद =परिच्छेद
शाला +छादन =शालाच्छादन
(3)विसर्ग संधि ( Combination Of Visarga ) :- विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे 'विसर्ग संधि' कहते है।
दूसरे शब्दों में-स्वर और व्यंजन के मेल से विसर्ग में जो विसर्ग होता है, उसे 'विसर्ग संधि' कहते है।
कुछ नियम इस प्रकार हैं-
(1) यदि विसर्ग के पहले 'अ' आये और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह रहे तो विसर्ग का 'उ' हो जाता है और यह 'उ' पूर्ववर्ती 'अ' से मिलकर गुणसन्धि द्वारा 'ओ' हो जाता है। जैसे-
मनः +रथ =मनोरथ
सरः +ज =सरोज
मनः +भाव =मनोभाव
पयः +द =पयोद
मनः +विकार = मनोविकार
पयः+धर =पयोधर
मनः+हर =मनोहर 
वयः+वृद्ध =वयोवृद्ध 
यशः+धरा =यशोधरा 
सरः+वर =सरोवर 
तेजः+मय =तेजोमय 
यशः+दा =यशोदा 
पुरः+हित =पुरोहित 
मनः+योग =मनोयोग
(2) यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आये और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग का ष् हो जाता है। जैसे-
निः +कपट =निष्कपट 
निः +फल =निष्फल
निः +पाप =निष्पाप 
दुः +कर =दुष्कर
(3) यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और परे क, ख, प, फ मे से कोइ वर्ण हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रहता है। जैसे-
प्रातः+काल =प्रातःकाल 
पयः+पान =पयःपान
(4) यदि 'इ' - 'उ' के बाद विसर्ग हो और इसके बाद 'र' आये, तो 'इ' - 'उ' का 'ई' - 'ऊ' हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। जैसे-
निः+रव =नीरव 
निः +रस =नीरस
निः +रोग =नीरोग दुः+राज =दूराज
(5) यदि विसर्ग के पहले 'अ' और 'आ' को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में 'र्' हो जाता है। जैसे-
निः+उपाय =निरुपाय 
निः+झर =निर्झर 
निः+जल =निर्जल
निः+धन =निर्धन 
दुः+गन्ध =दुर्गन्ध 
निः +गुण =निर्गुण
निः+विकार =निर्विकार
दुः+आत्मा =दुरात्मा
दुः+नीति =दुर्नीति
निः+मल =निर्मल
(6) यदि विसर्ग के बाद 'च-छ-श' हो तो विसर्ग का 'श्', 'ट-ठ-ष' हो तो 'ष्' और 'त-थ-स' हो तो 'स्' हो जाता है। जैसे-
निः+चय=निश्रय 
निः+छल =निश्छल
निः+तार =निस्तार 
निः+सार =निस्सार 
निः+शेष =निश्शेष
निः+ष्ठीव =निष्ष्ठीव
(7) यदि विसर्ग के आगे-पीछे 'अ' हो तो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर 'ओ' हो जाता है और विसर्ग के बादवाले 'अ' का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का चिह्न (ऽ) लगा दिया जाता है। जैसे-
प्रथमः +अध्याय =प्रथमोऽध्याय 
मनः+अभिलषित =मनोऽभिलषित
यशः+अभिलाषी= यशोऽभिलाषी

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